विद्याभारती E पाठशाला
भारतीय शिक्षा के मूल तत्व - 9
एकाग्रता
ज्ञान की प्राप्ति के लिए केवल एक ही मार्ग है और वह है एकाग्रता। मन की एकाग्रता ही संपूर्ण शिक्षा का सार है। एकाग्रता की शक्ति जितनी अधिक होगी ज्ञान की प्राप्ति भी उतनी ही अधिक होगी। एक ही विषय पर ध्यान देने का नाम है। एकाग्रता मन में सदैव संकल्प विकल्प पानी की लहरों के समान उत्पन्न होते रहते हैं। मन या चित्त्त अति चंचल होता है निरंतर वाह्य विषयों मैं प्रवृत्त होता रहता है। ऐसा चित्त्त शांत और स्थिर बना रहता है। चित्त्त की इस बिखरी हुई शक्ति से कोई कार्य संपादित नहीं होता। प्राचीन भारतीय दार्शनिकों ने चित्तवृत्ति निरोध का शिक्षा का लक्ष्य माना। वास्तव में चित्त्त ही शिक्षा का वाहन है। राजयोग में धारणा , ध्यान और समाधि एकाग्रता के ही निर्मित स्थल हैं। समाधि पूर्ण एकाग्रता की स्थिति है , जहां ज्ञान स्वरूप आत्मा का दर्शन होकर विषय का यथार्थ ज्ञान होता है। व्यक्ति अपनी मूल प्रकृति आध्यात्मिकता से जुड़ जाता है । और ज्ञान का उच्चतम स्तर पर पहुंच जाता है । चरम विवेक सत्य का अन्तर्भासात्मक दर्शन, वाणी जो प्राप्त पूर्ण अंतः प्रेरणा ज्ञान का ऐसा प्रत्यक्ष दर्शन है, जो प्रायः अंतः प्रकाश तक पहुंच जाता है। और मनुष्य सत्य का द्रष्टा बन जाता है।
भारतीय शिक्षा के मूल तत्व - 9
एकाग्रता
ज्ञान की प्राप्ति के लिए केवल एक ही मार्ग है और वह है एकाग्रता। मन की एकाग्रता ही संपूर्ण शिक्षा का सार है। एकाग्रता की शक्ति जितनी अधिक होगी ज्ञान की प्राप्ति भी उतनी ही अधिक होगी। एक ही विषय पर ध्यान देने का नाम है। एकाग्रता मन में सदैव संकल्प विकल्प पानी की लहरों के समान उत्पन्न होते रहते हैं। मन या चित्त्त अति चंचल होता है निरंतर वाह्य विषयों मैं प्रवृत्त होता रहता है। ऐसा चित्त्त शांत और स्थिर बना रहता है। चित्त्त की इस बिखरी हुई शक्ति से कोई कार्य संपादित नहीं होता। प्राचीन भारतीय दार्शनिकों ने चित्तवृत्ति निरोध का शिक्षा का लक्ष्य माना। वास्तव में चित्त्त ही शिक्षा का वाहन है। राजयोग में धारणा , ध्यान और समाधि एकाग्रता के ही निर्मित स्थल हैं। समाधि पूर्ण एकाग्रता की स्थिति है , जहां ज्ञान स्वरूप आत्मा का दर्शन होकर विषय का यथार्थ ज्ञान होता है। व्यक्ति अपनी मूल प्रकृति आध्यात्मिकता से जुड़ जाता है । और ज्ञान का उच्चतम स्तर पर पहुंच जाता है । चरम विवेक सत्य का अन्तर्भासात्मक दर्शन, वाणी जो प्राप्त पूर्ण अंतः प्रेरणा ज्ञान का ऐसा प्रत्यक्ष दर्शन है, जो प्रायः अंतः प्रकाश तक पहुंच जाता है। और मनुष्य सत्य का द्रष्टा बन जाता है।
No comments:
Post a Comment