नवरात्र के वैज्ञानिक महत्व
(1) .नवरात्र शब्द से 'नव अहोरात्रों (विशेष रात्रियां) का बोध' होता है। इस समय शक्ति के नव रूपों की उपासना की जाती है क्योंकि 'रात्रि' शब्द सिद्धि का प्रतीक माना जाता है। भारत के प्राचीन ऋषि-मुनियों ने रात्रि को दिन की अपेक्षा अधिक महत्व दिया है।मनीषियों ने रात्रि के महत्व को अत्यंत सूक्ष्मता के साथ वैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य में समझने और समझाने का प्रयत्न किया। अब तो यह एक सर्वमान्य वैज्ञानिक तथ्य भी है कि रात्रि में प्रकृति के बहुत सारे अवरोध खत्म हो जाते हैं। हमारे ऋषि-मुनि आज से कितने ही हजारों-लाखों वर्ष पूर्व ही प्रकृति के इन वैज्ञानिक रहस्यों को जान चुके थे।
(2) श्रीराम मर्यादा पुरुषोत्तम है और जिनका नाम लेने मात्र से ही जीव का कल्याण होता है आइये उन्ही श्रीराम के जन्म प्रसंग श्रीराम का जन्म उत्सव की झांकी का आनंद ले।
राम रामेति रामेति राम राम मनोरमे।
सहस्त्र नाम तत्तुल्यम राम नाम वरानने।।
रम क्रीडायाम धातु से शब्द बनता है राम जिसका अर्थ होता है रमण करना अर्थात जो अपने भक्तो के ह्रदय में निरंतर रमण करे वही श्रीराम है। श्रीराम के चरित्र का वर्णन किसी भी काल में कोई भी नहीं कर सकता। वे असीमित अपरिमेय अनुपमय है वेड पुराण शंकरजी नारद शेषजी सरस्वती आदि सभी नेति नेति कहकर वर्णन करते है ऐसे श्रीराम के चरित्रो का श्रवण मनन और गान करने से निश्चय ही मनुष्य का कल्याण होता है इसमें कोई शंसय नहीं है।
(1) .नवरात्र शब्द से 'नव अहोरात्रों (विशेष रात्रियां) का बोध' होता है। इस समय शक्ति के नव रूपों की उपासना की जाती है क्योंकि 'रात्रि' शब्द सिद्धि का प्रतीक माना जाता है। भारत के प्राचीन ऋषि-मुनियों ने रात्रि को दिन की अपेक्षा अधिक महत्व दिया है।मनीषियों ने रात्रि के महत्व को अत्यंत सूक्ष्मता के साथ वैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य में समझने और समझाने का प्रयत्न किया। अब तो यह एक सर्वमान्य वैज्ञानिक तथ्य भी है कि रात्रि में प्रकृति के बहुत सारे अवरोध खत्म हो जाते हैं। हमारे ऋषि-मुनि आज से कितने ही हजारों-लाखों वर्ष पूर्व ही प्रकृति के इन वैज्ञानिक रहस्यों को जान चुके थे।
(2) श्रीराम मर्यादा पुरुषोत्तम है और जिनका नाम लेने मात्र से ही जीव का कल्याण होता है आइये उन्ही श्रीराम के जन्म प्रसंग श्रीराम का जन्म उत्सव की झांकी का आनंद ले।
राम रामेति रामेति राम राम मनोरमे।
सहस्त्र नाम तत्तुल्यम राम नाम वरानने।।
रम क्रीडायाम धातु से शब्द बनता है राम जिसका अर्थ होता है रमण करना अर्थात जो अपने भक्तो के ह्रदय में निरंतर रमण करे वही श्रीराम है। श्रीराम के चरित्र का वर्णन किसी भी काल में कोई भी नहीं कर सकता। वे असीमित अपरिमेय अनुपमय है वेड पुराण शंकरजी नारद शेषजी सरस्वती आदि सभी नेति नेति कहकर वर्णन करते है ऐसे श्रीराम के चरित्रो का श्रवण मनन और गान करने से निश्चय ही मनुष्य का कल्याण होता है इसमें कोई शंसय नहीं है।
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