Lesson- 9 शिक्षण सूत्र
१- शिक्षण सूत्र
शिक्षण एक संस्कार प्रक्रिया है। षिक्षण का तात्पर्य मनुष्य के ज्ञानात्मक, भावात्मक एवं क्रियात्मक संस्कारों का समन्वय एवं विकास करना तथा उसके व्यवहार में परिवर्तन लाना है । ज्ञान से इच्छा का जागरण होता है और इच्छा मनुष्य को क्रियाषील बनाती है अर्थात् व्यवहार कराती है ।
व्यवहार में परिवर्तन लाना ही सीखना या अधिगम कहलाता है । सीखना एवं सिखाना ही शिक्षण संस्कार है। बालक, विषय वस्तु, शिक्षण प्रक्रिया के तीन कारक हैं। षिक्षण एक अभ्यास प्रक्रिया है।
२- शिक्षा मनोविज्ञान
आज से शिक्षा मनोविज्ञान के पाठ प्रारंभ किये जा रहे है.
शिक्षा दर्शन
शिक्षा का क्या प्रयोजन है और मानव जीवन के मूल उद्देश्य से इसका क्या संबंध है, यही शिक्षा दर्शन का विजिज्ञास्य प्रश्न है। चीन के दार्शनिक मानव को नीतिशास्त्र में दीक्षित कर उसे राज्य का विश्वासपात्र सेवक बनाना ही शिक्षा का उद्देश्य मानते थे। प्राचीन भारत में सांसारिक अभ्युदय और पारलौकिक कर्मकांड तथा लौकिक विषयों का बोध होता था और परा विद्या से नि:श्रेयस की प्राप्ति ही विद्या के उद्देश्य थे। अपरा विद्या से अध्यात्म तथा रात्पर तत्व का ज्ञान होता था। परा विद्या मानव की विमुक्ति का साधन मान जाती थी। गुरुकुलों और आचार्यकुलों में अंतेवासियों के लिये ब्रह्मचर्य, तप, सत्य व्रत आदि श्रेयों की प्राप्ति परमाभीष्ट थी और तक्षशिला, नालंदा, विक्रमशिला आदि विश्वविद्यालय प्राकृतिक विषयों के सम्यक् ज्ञान के अतिरिक्त नैष्ठिक शीलपूर्ण जीवन के महान उपस्तंभक थे। भारतीय शिक्षा दर्शन का आध्यात्मिक धरातल विनय, नियम, आश्रममर्यादा आदि पर सदियों तक अवलंबित रहा।
Lesson- 9 शिक्षण सूत्र
२- शिक्षा मनोविज्ञान
१- शिक्षण सूत्र
शिक्षण एक संस्कार प्रक्रिया है। षिक्षण का तात्पर्य मनुष्य के ज्ञानात्मक, भावात्मक एवं क्रियात्मक संस्कारों का समन्वय एवं विकास करना तथा उसके व्यवहार में परिवर्तन लाना है । ज्ञान से इच्छा का जागरण होता है और इच्छा मनुष्य को क्रियाषील बनाती है अर्थात् व्यवहार कराती है ।
व्यवहार में परिवर्तन लाना ही सीखना या अधिगम कहलाता है । सीखना एवं सिखाना ही शिक्षण संस्कार है। बालक, विषय वस्तु, शिक्षण प्रक्रिया के तीन कारक हैं। षिक्षण एक अभ्यास प्रक्रिया है।
२- शिक्षा मनोविज्ञान
आज से शिक्षा मनोविज्ञान के पाठ प्रारंभ किये जा रहे है.
शिक्षा दर्शन
शिक्षा का क्या प्रयोजन है और मानव जीवन के मूल उद्देश्य से इसका क्या संबंध है, यही शिक्षा दर्शन का विजिज्ञास्य प्रश्न है। चीन के दार्शनिक मानव को नीतिशास्त्र में दीक्षित कर उसे राज्य का विश्वासपात्र सेवक बनाना ही शिक्षा का उद्देश्य मानते थे। प्राचीन भारत में सांसारिक अभ्युदय और पारलौकिक कर्मकांड तथा लौकिक विषयों का बोध होता था और परा विद्या से नि:श्रेयस की प्राप्ति ही विद्या के उद्देश्य थे। अपरा विद्या से अध्यात्म तथा रात्पर तत्व का ज्ञान होता था। परा विद्या मानव की विमुक्ति का साधन मान जाती थी। गुरुकुलों और आचार्यकुलों में अंतेवासियों के लिये ब्रह्मचर्य, तप, सत्य व्रत आदि श्रेयों की प्राप्ति परमाभीष्ट थी और तक्षशिला, नालंदा, विक्रमशिला आदि विश्वविद्यालय प्राकृतिक विषयों के सम्यक् ज्ञान के अतिरिक्त नैष्ठिक शीलपूर्ण जीवन के महान उपस्तंभक थे। भारतीय शिक्षा दर्शन का आध्यात्मिक धरातल विनय, नियम, आश्रममर्यादा आदि पर सदियों तक अवलंबित रहा।
Lesson- 9 शिक्षण सूत्र
२- शिक्षा मनोविज्ञान
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