Lesson 5 (ज्ञानार्जन के करण)
मनुष्य के शरीर में परमात्मा ने दस इंद्रियां दी हैं। पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ और पाँच कर्मेन्द्रियाँ। (1) आँख (2) कान (3)जिह्वा (4) नाक (5) त्वचा ये पाँच इन्द्रियाँ विषयों का ज्ञान प्राप्त कराती हैं। आँख से भला-बुरा देखना, कान से कोमल-कठोर शब्द सुनना, नाक से सुगन्ध दुर्गन्ध सूँघना, जिह्वा से खाद्य-अखाद्य का स्वाद जानना, त्वचा से कोमल या कठोरता का अनुभव करना। प्रत्येक इन्द्रिय का एक देवता होता है उसी से विषयों की उत्पत्ति होती है। आँख का विषय रूप है और सूर्य देवता। सूर्य या अग्नि न हो तो आंखें बेकार हैं। कान का विषय शब्द, गुण आकाश है। नाक का विषय गन्ध और गुण पृथ्वी है। जीभ का विषय रस और गुण जल है। त्वचा का विषय स्पर्श और गुण वायु है। इन गुणों और शक्तियों के कारण इन इन्द्रियों का उपयोग बहुत अधिक है।
पाँच कर्मेन्द्रियों में (1) वाणी (2) हाथ (3) पैर (4) जननेन्द्रिय और (5) गुदा हैं। वाणी या मुख से बोलते हैं, स्वाद चखते हैं। हाथ से कार्य करते हैं, पैर से चलते हैं। जननेन्द्रिय से मूत्र त्याग और गुदा से मल निकालते हैं।
यह इन्द्रियाँ आत्मा की सुविधाजनक विकास यात्रा के सहायक उपकरण हैं। यह आत्मा के औजार हैं, सेवक हैं,परमात्मा ने इन्हें इसलिये प्रदान किया है कि इनकी सहायता से आत्मा अपनी आवश्यकतायें पूरी करे और सुख प्राप्त करे। यह सभी इन्द्रियाँ बड़ी उपयोगी हैं। सभी का कार्य जीवन को उत्कर्ष और आनन्द प्राप्त कराना है। यदि उनका सदुपयोग किया जाय तो मनुष्य निरन्तर जीवन का मधुर रस चखता हुआ जन्म को सफल बना सकता है।
विद्यालय में भैया बहिनों को ज्ञानार्जन के लिए ज्ञानेन्द्रियाँ और कर्मेन्द्रियाँ के समुचित विकास का प्रयास किया जाना चाहिए..
Lesson 5 (ज्ञानार्जन के करण)
विद्याभारती वंदना सभा
https://www.youtube.com/watch?v=4OtTridTd-Y
https://www.youtube.com/watch?v=XrPaf_BR0AU
मनुष्य के शरीर में परमात्मा ने दस इंद्रियां दी हैं। पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ और पाँच कर्मेन्द्रियाँ। (1) आँख (2) कान (3)जिह्वा (4) नाक (5) त्वचा ये पाँच इन्द्रियाँ विषयों का ज्ञान प्राप्त कराती हैं। आँख से भला-बुरा देखना, कान से कोमल-कठोर शब्द सुनना, नाक से सुगन्ध दुर्गन्ध सूँघना, जिह्वा से खाद्य-अखाद्य का स्वाद जानना, त्वचा से कोमल या कठोरता का अनुभव करना। प्रत्येक इन्द्रिय का एक देवता होता है उसी से विषयों की उत्पत्ति होती है। आँख का विषय रूप है और सूर्य देवता। सूर्य या अग्नि न हो तो आंखें बेकार हैं। कान का विषय शब्द, गुण आकाश है। नाक का विषय गन्ध और गुण पृथ्वी है। जीभ का विषय रस और गुण जल है। त्वचा का विषय स्पर्श और गुण वायु है। इन गुणों और शक्तियों के कारण इन इन्द्रियों का उपयोग बहुत अधिक है।
पाँच कर्मेन्द्रियों में (1) वाणी (2) हाथ (3) पैर (4) जननेन्द्रिय और (5) गुदा हैं। वाणी या मुख से बोलते हैं, स्वाद चखते हैं। हाथ से कार्य करते हैं, पैर से चलते हैं। जननेन्द्रिय से मूत्र त्याग और गुदा से मल निकालते हैं।
यह इन्द्रियाँ आत्मा की सुविधाजनक विकास यात्रा के सहायक उपकरण हैं। यह आत्मा के औजार हैं, सेवक हैं,परमात्मा ने इन्हें इसलिये प्रदान किया है कि इनकी सहायता से आत्मा अपनी आवश्यकतायें पूरी करे और सुख प्राप्त करे। यह सभी इन्द्रियाँ बड़ी उपयोगी हैं। सभी का कार्य जीवन को उत्कर्ष और आनन्द प्राप्त कराना है। यदि उनका सदुपयोग किया जाय तो मनुष्य निरन्तर जीवन का मधुर रस चखता हुआ जन्म को सफल बना सकता है।
विद्यालय में भैया बहिनों को ज्ञानार्जन के लिए ज्ञानेन्द्रियाँ और कर्मेन्द्रियाँ के समुचित विकास का प्रयास किया जाना चाहिए..
Lesson 5 (ज्ञानार्जन के करण)
विद्याभारती वंदना सभा
https://www.youtube.com/watch?v=4OtTridTd-Y
https://www.youtube.com/watch?v=XrPaf_BR0AU
No comments:
Post a Comment